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ये वही तालाब है, जहां ये घटना घटी है। गर्मी की वजह से तालाब में पानी कम हो गया है
एक दिन अचानक खबर आई कि मेरा तबादला हो गया है। दरअसल मैं छत्तीसगढ़ इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का कर्मचारी हूं। पता चला मुझे तुरंत कोरबा शहर जाकर ज्वाइन करना है। हमारी सबसे बड़ी मजबूरी यही होती है कि हमें वहां जाना ही पड़ता है जहां ट्रांसफर होता है..भले ही वह जगह पसंद हो या न हो। ट्रांसफर से मैं बहुत दु:खी था, पर खुश था कि मुझे नई जिम्मेदारी दी गई थी। खैर, भारी मन से जाने की तैयारी करने लगा। उन दिनों ‘काला पत्थर’ फिल्म रिलीज हुई थी। ये फिल्म मैंने कई बार देखी और बच्चन का मुरीद हो गया। इसका एक गाना..‘एक रास्ता है जिंदगी’..मुझे बहुत पसंद था। मैं अक्सर ये गाना गुनगुनाता रहता था। खूबसूरत जंगल, पहाड़, नदियों के बीच से होते हुए बाइक पर ये गाना गाते हुए कब कोरबा पहुंच गया, पता ही नहीं चला। सीधे पावर प्लांट के ऑफिस गया और ज्वाइनिंग की सूचना दी। दूसरे दिन अधिकारी ने बुलाया और कहा कि तुम्हें एश पाइप लाइन का काम देखना है। ये पाइप लाइन जंगलों के बीच कई किलोमीटर तक फैली रहती है और इसमें एश (राख) रहती है। अक्सर पाइप लाइन फूट जाती है और उसकी रिपेयरिंग के लिए किसी भी समय जाना पड़ता है। खैर, मुझे काम बहुत पसंद आया। मैं खुशी-खुशी घर लौट आया। अब मुझे यहां रहते हफ्ताभर हो गया था। शहर रास आने लगा। छुट्टी के दिन परिवार को शिफ्ट करने का प्रोग्राम बनाया। दूसरे ही दिन पत्नी, बच्चों को लेकर यहां आ गया। सबका मन लगने लगा। पत्नी बस एक बात से नाराज थी कि मुझे कभी भी प्लांट से बुलावा आता था। रात 1 बजे, 2 बजे। क्योंकि एश लाइन फटी और घंटी बजी। देर रात दूर गांवों से गुजरते हुए घने जंगलों में जाना पड़ता था। पत्नी चिंतित रहतीं थीं।
एक दिन रात 2.40 के आसपास फोन की घंटी बजी। खबर मिली पाइप लाइन फूट गई है। तुरंत जाना है। मैं तैयार हो गया। थोड़ी देर में जीप आ गई और मैं निकल गया। सुनसान सड़क, घना अंधेरा,चारों ओर जंगल। सियार के रोने की आवाज माहौल को और भी डरावना बना रही थी। ड्राइवर ने बताया कि हम शहर से 7 किमी. दूर आ गए हैं। घबराहट और बढ़ गई, पहला मौका था। कहते हैं ना डर लगे तो गाना गाओ..बस मैं शुरू हो गया…एक रास्ता है जिंदगी। थोड़ी देर बाद हम वहां पहुंच गए जहां पाइप लाइन फूटी थी। मरम्मत करते-करते सुबह हो गई। पास में एक नदी थी वहां जाकर मुंह धोया और वापस कोरबा की ओर निकल पड़े।
थका होने के कारण बहुत नींद आ रही थी। पर घर पहुंचते ही अधिकारी का फोन आ गया। ऑफिस जाना पड़ा। जैसे ही प्लांट पहुंचा तो सभी मुझे अजीब नजरों से देख रहे थे। जैसे कि मैं जिंदा कैसे आ गया? बाद में सहयोगियों ने बताया कि जिस जगह रात में तुम गए थे वहां जाने से लोग पीछे हट जाते हैं, क्योंकि वहां नदी के पास चुड़ैल का डेरा है। कई लोगों को दिखी है। ये सुनकर तो मेरे पैर के नीचे से जमीन खिसक गई। क्योंकि मैंने उस तालाब का पानी भी पिया था। अंदर से हालत खराब थी, पर मैंने ऊपर से अपने आपको निडर दिखाते हुए कहा कि मैं भूत-प्रेत में विश्वास नहीं करता। सब बकवास है। मैं घर तो आ गया। मेरी हालत पतली। फोन की घंटी बजे तो डर लगे कि कहीं फिर वहीं तो नहीं जाना पड़ेगा।
समय गुजरने लगा। मैं भी ये बात भूल गया। सालों बाद उसी इलाके पाइप लाइन फूट गई। फोन आया, पता चला जीप खराब है। मैं अपनी बाइक से निकल पड़ा। ठंड के दिन थे। शायद रात के 11.30 के आसपास का समय था। पूर्णिमा होने के कारण चांद की रोशनी में पूरा जंगल नहा रहा था। बड़ा खूबसूरत नजारा था। मैंने बाइक रोकी और माहौल का आनंद लेने लगा। मन भरने के बाद मैं अपना पसंदीदा गाना…एक रास्ता.. गाते हुए निकल पड़ा। नदी आने के कारण मैंने बाइक की स्पीड कम कर दी। अचानक मुझे किसी महिला की आवाज आई जो छत्तीसगढ़ी भाषा में मुझसे लिफ्ट मांग रही थी। सहज ही मैंने बाइक रोक दी और उसके आने का इंतजार करने लगा। वही गाना गुनगुनाने लगा। बहुत देर जब वह नहीं आई तो मैं बाइक स्टार्ट कर आगे बढ़ने लगा तो फिर वही आवाज आई। पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं। सुनसान जंगल में आवाज बुरी तरह गूंज रही थी। मैंने इधर-उधर देखा कोई नहीं दिखा। अब मुझे घबराहट होने लगी। मैं जोर-जोर से गाना गाने लगा। बहुत देर कोई आवाज नहीं आई। मैंने सोचा अब चलना चाहिए।
बाइक स्टार्ट की गेयर लगाया बाइक आगे नहीं बढ़ी। फुल एक्सीलेटर दिया, बाइक जहां की तहां। मैं समझ गया बाइक पंचर हो गई है। मैंने लाइटर जलाया और दोनों पहिये देखे। दोनों अच्छे थे, कोई पंचर नहीं। बाइक स्टार्ट की थोड़ी आगे बढ़ी। फुल रेस देने के बाद भी टस से मस नहीं हो रही थी। रेस के चक्कर में हेडलाइट का बल्ब उड़ गया। टेल लाइट एकमात्र सहारा था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करूं? साथियों की बातें याद आने लगीं तो और डर लगने लगा। मैं चुपचाप बैठ गया। काफी समय हो चला था मैं उठा और मैंने बाइक को एक तरफ झुकाया और फिर स्टार्ट किया। गेयर डाला, बाइक कुछ दूर चली। मैं खुश होकर गाना गुनगुनाने लगा। अचानक मुझे ऐसा लगा कि बाइक की पीछे की सीट पर कोई बैठा है। मैंने घबराकर फुल एक्सीलेटर दे दिया। कोई फायदा नहीं हुआ। बाइक वहीं थी। मैं बुरी तरह कांपने लगा। घबरा गया..गाना भूल गया। क्योंकि न तो मैं बाइक से उतर सकता था और न ही बाइक आगे बढ़ रही थी। मौत को सामने देखकर मैंने पूरी ताकत से हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू किया। पाठ खत्म होने के बाद कुछ घबराहट कम हुई तो मैंने एक्सीलेटर दिया। बहुत धीरे-धीरे बाइक चलने लगी और जैसे ही तालाब पार हुआ बाइक ने स्पीड पकड़ ली। मैं कब घर पहुंचा पता नहीं।
बुरी तरह कांप रहा था। थोड़ी देर में बहुत तेज बुखार आ गया। पत्नी को सारा किस्सा बताया। वह भी बहुत घबरा गई। मैं कई दिनों के इलाज के बाद स्वस्थ हो पाया, इसके बाद मैं शाम के बाद उस रास्ते कभी नहीं गया। अभी भी प्लांट के लोग शाम होने के बाद यहां से नहीं गुजरते बल्कि प्लांट में ही रात रूककर अपने घर जाते हैं।आज भी ‘एक रास्ता है जिंदगी गाना’ कहीं बजता है तो मैं सहम जाता हूं।
– रामकृष्ण देवांगन , कोरबा