Type Here to Get Search Results !

हवेली का रहस्य/ क्यों मुर्दे कुआं के अंदर पैर लटकाकर बैठे थे?

 पाठकों आपके फोन,मेल, मैसेज लगातार मिल रहे हैं। ‘फटफटी साहब की हवेली’ के बहुत किस्से हैं। आपके अनुरोध पर आज एक और नई स्टोरी….

बहुत दिनों बाद फिर किसी काम से मैं साहब से मिलने पहुंचा, पता चला साहब दौरे पर हैं।दो दिन बाद आएंगे। मैं ये सोचकर रूक गया कि अब साहब से मिलकर ही जाऊंगा। फिर वही रामप्रसाद चपरासी। मुझे घूर-घूर कर देख रहा था। मैं डर गया।मैंने उसे डांटते हुए पूछा-ऐसे क्यों देख रहे हो। वह बिना कुछ बोले चला गया।फिर थोड़ी देर बाद आकर मुझसे बोला-साहब आपका परिवार नहीं है क्या? मैंने कहा क्यों?बोला आपको यहां आने में डर नहीं लगता। मैंने पूछा- क्यों यहां अभी भी कुछ है क्या? बोला-बहुत कुछ है।जान चली जाएगी,तब समझोगे। मैंने कहा तुम मुझे डराने की कोशिश मत करो। अब मैं पूरे इंतजाम से आया हूं। रामप्रसाद मेरी तरफ देखकर मुस्कुराने लगा।

ठंड के दिन थे।शाम जल्दी हो जाती थी।हवेली रेलवे स्टेशन से नजदीक ही थी।उस जमाने में कोई भी रेल आने से पहले तीन बार बड़ा घंटा बजाया जाता था। तांगे चलते थे।घोड़ों की टापों की रफ्तार से समय का अंदाज लग जाता था। थोड़ी ही देर में रेल की सीटी की आवाज आई।मैं समझ गया साबरमती एक्सप्रेस आई और शाम के 5.30 बज रहे हैं। मैंने अखबार रखा और टहलने के लिए जा ही रहा था कि रामप्रसाद मिला।इतने में जोर से सायरन बजा। मैंने रामप्रसाद से पूछा – ये सायरन क्यों बजा? वह बोला पीछे ही शुगर मिल है। वहां से सायरन की आवाज आती रहती है। बात करते-करते अचानक मुझे खुशबूदार अगरबत्ती की जोरदार महक आई। मैंने रामप्रसाद से पूछा- इतनी तेज अगरबत्ती क्यों जलाई? बोला- कहां? मैंने कहा इतनी खुशबू आ रही है। रामप्रसाद मुस्कुराकर बोला मुझे तो नहीं आ रही…और चला गया। रामप्रसाद के मजाक पर मुझे गुस्सा आ रहा था। खैर, अचानक साहब की आवाज आई..अरे डॉक्टर कहां हो? अंदर आओ। मैं अंदर बैठक में पहुंचा तो देखा वहां कोई नहीं था। मैंने आसपास नजर दौड़ाई कोई नहीं दिखा। मन का वहम सोचकर मैं बरामदे में आकर बैठ गया।

 शाम हो गई थी फिर भी काफी उजाला था। मैं टहलने के लिए फिर निकला।अभी थोड़ी दूर गया ही था कि याद आया मैं अपना रूमाल भूल गया हूं। मैं रूमाल लेने बंगले के विशाल गेट पर पहुंचा ही था कि क्या देखता हूं कि हवेली के पुराने और बहुत बड़े कुंआ की मुंडेर पर एक पुरूष और एक स्त्री बैठकर बातें कर रहे हैं। मैं ये देखकर चौंक गया कि दोनों मुंडेर पर बैठे तो हैं पर दोनों के पैर कुंए में अंदर की तरफ हैं और उनकी पीठ मेरी तरफ है। मैं उन्हें समझाने जा ही रहा था कि ऐसे पैर करके मत बैठो, कुएं में गिर जाओगे। जैसे ही मैं उनके थोड़े करीब पहुंचा, दोनों मेरी आंखों के सामने से ओझल हो गए। वहां कोई नहीं था। अब मेरी हालत खराब थी।मुझे बार-बार रामप्रसाद का बात याद आ रही थी। मैं जैसे-तैसे बंगले तक पहुंचा। रामप्रसाद को आवाज लगाई। दूसरा चपरासी जीवन आया, बोला वो तो छुट्टी पर है। मैंने कहा पानी पीना है। पानी पीकर मैं लेट गया पूरी रात जागते हुए कटी।

सुबह रामप्रसाद चाय लेकर आया। मैंने कहा तुम जो कह रहे थे यहां बहुत कुछ है…वो बात कल शाम बिल्कुल सच निकली। वो बोला मैंने ऐसा आपसे कब कहा? मैंने नाराज होते हुए कहा-अरे भुलक्कड़ कल तो छुट्टी पर था परसों तूने कहा था। रामप्रसाद बोला साहब मैं एक हफ्ते से छुट्टी पर हूं। आज ही आया हूं। आप किसी से भी पूछ लीजिए। ये सुनकर मैं सन्न रह गया। देखा तो साहब सामने खड़े थे। मैंने कहा आपने कल रात मुझे आवाज दी थी मैं आया पर आप मिले नहीं। साहब बोले मैं अभी 1 घंटा पहले दौरे से लौटा हूं। ये दूसरा झटका था अब मैंने अपना बोरिया-बिस्तर बांधने में ही अपनी भलाई समझी और मैं वहां से निकल लिया। मैं आज भी सोचता हूं कि आखिर वो कौन था जो मुझसे रामप्रसाद बनकर मिला था और साहब की आवाज,अगरबत्ती की खुशबू कहां से आई? क्यों दो लोग कुंए में अंदर की तरफ पैर लटकाकर बैठे थे। कोई जवाब नहीं…

लेखक:जी.एस.वैदय

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.