ग्वालियर महापौर चुनाव :
- दोनों दलों में पहली बार बगावतीयोँ की संख्या बढ़ी
- दोनों दलों के नेताओं ने संभाला मोर्चा
- दिग्विजय सिंह ने कॉंग्रेस का जिम्मा दिया महल विरोधी अशोक सिंह को
सिटी टुडे। प्रदेश में निकाय चुनाव का शंखनाद बजे आज 9 दिन हो गए नामांकन पत्र वापसी के बाद पहली बार ग्वालियर के इतिहास में हो रहा है कि दोनों प्रमुख दलों में विद्रोहियों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ी है। कांग्रेस के अंदर गुटबाजी के कारण संगठन छलनी होने के बाद कांग्रेस के सशक्त प्रत्याशी शोभा सिकरवार को इस छलनी हुई गुटबाजी के कारण नुकसान भी उठाना पड़ रहा है परंतु कांग्रेस का कोई कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह कमलनाथ दोनों में से अभी तक कोई भी कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में नहीं आया जब के शुरुआती दौर में कमजोर समझी जाने वाली सुमन शर्मा भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में सत्ता एवं संगठन दोनों अपने मतभेदों को मतदान तक बुलाकर चुनावी रण में कूदकर सुमन शर्मा की स्थिति को मजबूत बनाते जा रहे हैं जबकि सुमन शर्मा मतदाताओं के लिए शोभा सिकरवार की तुलना में एक अनजान चेहरा शुरुआती दौर में महसूस हो रहा था . भा जा पा के अंदर भी ग्वालियर के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि बगावती तेवरो के कारण केंद्रीय मंत्रियों को भी चुनाव प्रचार में पसीना आ रहा है यहां तक के आरक्षण जैसे अनुशासित संगठन से जुड़े कई नेताओं के रिश्तेदार बगावत कर चुनाव लड़ रहे हैं उनमें एक उदाहरण वार्ड क्रमांक 43 से गिरीश मिश्रा का है जिन के पिता तथा चाचा r.s.s. जैसे संगठन के आजीवन अनुशासित स्वयंसेवक हो कार्य करते रहे गिरीश मिश्रा के चाचा आज भी आरएसएस संगठन की प्रदेश स्तरीय पदाधिकारी है. दोनों दलों के नेता एवं कार्यकर्ता अपने नेताओं पर सौदेबाजी कर टिकट देने का खुलेआम आरोप भी लगा रहे हैं जिसका असर मतदाताओं पर पड़ रहा है .
भारतीय जनता पार्टी के अंदर अधिकतर विद्रोह सांसद विवेक शेजवलकर की कार्यशैली के कारण हो रहा है, इस विद्रोह को दबाने के लिए बगावती चेहरों के अलावा नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए केंद्रीय मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया नरेंद्र सिंह तोमर सहित r.s.s. के प्रमुख लोग जय भान सिंह पवैया अनूप मिश्रा जी भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में चुनावी मैदान में आ चुके हैं दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी शोभा सिकरवार वह उनके परिजन अपनी व्यक्तिगत टीम के साथ चुनावी मैदान में है उस व्यक्तिगत राजनीतिक दल का तो भावना को बुलाकर कई चेहरे अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन जरूर दे रहे हैं परंतु कांग्रेस की ओर से प्रभारी दिग्विजय सिंह ने डैमेज कंट्रोल के लिए अपना प्रतिनिधि अशोक सिंह को बनाया है ज्ञात हो कि अशोक सिंह की पारिवारिक पृष्ठभूमि अपने दादा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय डोँगर सिंह कक्का जिन्होंने रियासत काल से ही सिंधिया परिवार के विरोध में संगठित होकर बिगुल बजाया था उसके बाद कांग्रेस की राजनीति में श्री अशोक सिंह के पिता स्वर्गीय राजेंद्र सिंह जी भी अंचल में सिंधिया परिवार के विरोध में संगठित होकर सक्रिय रहे स्वर्गीय राजेंद्र सिंह 1972 से 1977 तक एक ही विधानसभा का चुनाव जीते उसमें भी अंतिम समय में 19 महीने के लिए उनको लोक निर्माण विभाग का राज्य मंत्री बनाया गया उसके बाद 1980 की लहर में वह लोकसभा का चुनाव 5000 से अधिक वोटों से अपने पारिवारिक मित्र प्रतिद्वंदी स्वर्गीय नारायण कुष्ण शेजवलकर से चुनाव हारने के बाद एक विधानसभा चुनाव भी हार चुके हैं. अंचल के गलियारों में अशोक सिंह जैसे कुशल संगठक नेता कांग्रेस के पास नहीं है परंतु उनकी भी छवि कांग्रेस के अंदर गुटबाजी को समाप्त करने की जगह विद्रोहियों के असंतोष को सड़क से हटाकर कमरों के अंदर खुले दरवाजों से संचार माध्यमों दोबारा सक्रिय है यहां यह बताना मुनासिब होगा कि अशोक सिंह खुद एक लोकसभा का उपचुनाव तथा तीन लोकसभा चुनाव निरंतर 4 चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेश के गलियारों में इसलिए कद्दावर नेता माने जाते हैं क्योंकि उनके परिवार की छवि सिंधिया अर्थात महल विरोधी है इसका असर भी भविष्य में नकारात्मक रूप से कांग्रेस प्रत्याशी के ऊपर पडने के संकेत नजर आ रहे हैं . बताया तो यहां तक जाता है के इसी कारण कांग्रेस के कई सुमन शर्मा की सजातीय जाति के लोग कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में सक्रिय नहीं है। दूसरी किश्त.......