जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि अंतरिम या स्थायी गुजारा भत्ता देने के पीछे का इरादा पति या पत्नी को दंडित करना नहीं बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि विवाह के नाकाम रहने के कारण आश्रित पति या पत्नी बेसहारा नहीं रह जाएं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में सभी प्रासंगिक कारकों के बीच संतुलन होना चाहिए।
निचली अदालत के आदेश के अनुसार, पति द्वारा दी जाने वाली भरण-पोषण राशि में वृद्धि के लिए एक महिला द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर फैसला करते समय अदालत ने यह टिप्पणी की।
इस मामले में, याचिकाकर्ता ने 35,000 रुपये के मासिक भरण-पोषण का अनुरोध किया और कहा कि निचली अदालत द्वारा 3,000 रुपये की राशि तय की गई थी जो उसके भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है। महिला की दलील दी थी कि पति की आमदनी 82,000 रुपये प्रति माह है और उसने निचली अदालत को अपनी वास्तविक आमदनी की जानकारी नहीं दी।