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कुर्सी बचाने के उस्ताद हैं ज़िद्दी नीतीश आठवीं बार मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार

 

बिहार में गठबंधन टूट गया । नया बन गया । दरार तो पहले से ही थी । बस निभ रही थी । कट रही थी । नीतीश कुमार अलग ढंग के नेता है । येन केन मुख्यमंत्री बन ही जाते हैं । एक अलग अकड़ है । ऐंठ है । खुद को सुशासक के तौर पर प्रचारित करते रहे हैं । अब यही सुशासन बाबू उनकी चिढ़ भी बन गई है । 

नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के खिलाफ थे । लालू प्रसाद यादव के खिलाफ सबसे मुखर नीतीश ही थे । नीतीश मगर मौक़ा परस्त भी हैं । कुर्सी के लिए सिद्धांतों और मूल्यों की परवाह नहीं करते । अजीब तरह के ज़िद्दी हैं । रूठ जाते हैं तो रूठे ही रहते हैं । 2013 में भाजपा का साथ छोड़ा था । वजह थे नरेन्द्र मोदी । यहाँ तक कि नरेन्द्र मोदी के लिए भोजन का निमंत्रण भी रद्द कर दिया । नीतीश का यह चेहरा बिहार की जनता में उतर चुका है । जनता इनसे नफ़रत करती है । नीतीश मगर कुर्सी के माहिर खिलाड़ी हैं । कैसे भी करके कुर्सी हथिया ही लेते हैं । 

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 43 सीटों पर सिमटी जदयू को मुख्यमंत्री पद देने के बाद भाजपा का जिस प्रकार का रवैया रहा, वह नीतीश कुमार को कभी रास नहीं आया। वर्ष 2005 से सत्ता सहयोगी (2013 से 2017 के काल को छोड़कर) भाजपा, नीतीश कुमार के सामने कभी इतनी मुखर नहीं रही। अब स्थिति बदली तो नीतीश के मन में बदलाव का ख्याल आने लगा। 

*जातीय राजनीति पर भी असर के आसार*

नीतीश कुमार की राजनीति का आधार वोट बैंक ओबीसी और महादलित रहे हैं। करीब 8 से 10 फीसदी वोट शेयर के साथ वे जिस खेमे में शिफ्ट होते हैं, सरकार उसकी बन जाती है। लेकिन, आरसीपी सिंह के खिलाफ नोटिस और उनके इस्तीफे ने नालंदा या यूं कहें तो दक्षिणी बिहार के ओबीसी वोट बैंक तक एक बड़ा संदेश दिया है। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह जिस भूमिहार जाति से आते हैं, उसने बिहार चुनाव में खुलकर नीतीश कुमार का विरोध किया था। कई स्थानों पर नोटा, कांग्रेस या लोजपा उम्मीदवार को वोट देने की खबर आई। ऐसे में उनके स्तर से आरसीपी पर जिस प्रकार का हमला किया गया है, उसका भी अगल संदेश जाता दिख रहा है।

बहरहाल इस बार नीतीश भले ही नए गठबंधन के साथ चले जाएँ । रास्ते मगर आसान नहीं है । राजद के तेजस्वी को क़ाबू करना इतना आसान नहीं ।भाजपा के लोग तो यह लेते थे । अब सब बेक़ाबू होंगे । क़ानून व्यवस्था अलग समस्या बनेगी । ट्रांसफ़र-पोस्टिंग तक में झगड़े होंगे । नीतीश भले ही खुद को कामयाब मान रहे हों । शह मात के खेल में बाज़ी नीतीश के हाथ है । खेल मगर ख़त्म नहीं होगा शुरू होगा । जनता की नज़र में लिजलिजे नीतीश कुर्सी बचा लेंगे । पार्टी को दांव पर लगा कर । तय मानिए अब जदयू में टूट तय है । भाजपा ख़ामोश है । पर आग धधक रही है । चौसर बिछी हुई है । खेल बाक़ी है । यह नीतीश कुमार की आख़िरी पारी है । अब चिराग़ के दिन आने वाले हैं । बिहार की राजनीति बदलेगी । बस इंतज़ार करिए । राजनीति अभी बाक़ी है …..।

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