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क्या वहां मुर्दा पानी फेंकता था!

 

शांतनु   शर्मा.  दोस्तों रहा नहीं गया। आपकी मांग पर मुझे फिर आना पड़ा। तो चलिए…..फिर चलते हैं फटफटी साहब की हवेली। एक साल बाद मैं शर्मा साहब से मिलने सीहोर पहुंचा। सारा नजारा ही बदला हुआ था। हवेली एकदम नई दुल्हन की तरह सजी हुई थी।मुझे यकीन नहीं हुआ कि ये वही हवेली है।अब इसका नाम भी बदल गया था और ये स्पेशल ऑफीसर्स बंगलो के नाम से जानी जाने लगी। मैं निश्चिंत था, ये सोचकर की अब फटफटी साहब का किस्सा खत्म हो गया है। खैर, गेस्ट रूम में फ्रैश होकर जप करने की तैयारी करने लगा। शाम का समय था। गरमी का मौसम होने की वजह से संध्या देर से होती थी। जप करने बैठ गया। अभी एक माला भी जप नहीं कर पाया था कि अचानक मुझे ऐसा लगा कि मेरी माला कोई खींच रहा है। मैंने मन का वहम समझकर आंखें खोल लीं और जप करने लगा। कुछ नहीं हुआ-मैं समझ गया कि वहम हैं लेकिन अगले ही पल मैं गलत साबित हो गया….आंखें खुली हुईं हैं और क्या देखता हूं कि मेरे हाथ से कोई जप माला खींच रहा है , पर मुझे कोई दिखाई नहीं दे रहा है। मैं जोर से चिल्लाकर बाहर भागा। रात होने लगी सोचा साहब को बता दूं पर मुझे मालूम था कि वो मेरी बात नहीं मानेंगे और मुझे डांटकर भगा देंगे। मैं चुपचाप कमरे के बाहर ही बैठा रहा..अंदर जाने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। चपरासी को बोला मेरा पलंग आंगन में ही लगा दे। खाना खाकर मैं पलंग पर आकर लेट गया। हवा में झूमते पीपल के पेड़ के पत्तों की आवाज बड़ी प्यारी लग रही थी। धीरे-धीरे नींद आने लगी पर दिमाग से जपमाला का रहस्य निकल नहीं रहा था। खैर काफी रात हो गई..मैं सो गया।

 अचानक देर रात मेरी नींद खुली तो मुझे मेरी पीठ के नीचे बहुत ठंडा लगा और कुछ पीठ में चुभता हुआ  सा महसूस हुआ ।मैं घबराकर बैठ गया तो क्या देखता हूं कि मैं जमीन पर हूं। पलंग जमीन पर उल्टा पड़ा है और बिस्तर भी जमीन पर बिखरा पड़ा है। समझते देर न लगी कि किसी ने मेरा पलंग पलटा दिया है और मैं जमीन पर गिर पड़ा हूं। माजरा समझ में आ गया। नींद काफूर हो गई। कुछ सूझ नहीं रहा था क्या करूं। डर से बुरा हाल था पसीने छूट रहे थे। जैसे-तैसे मैं आंगन की दीवार फांदकर बाहर बरामदे में आकर बैठ गया। जैसे ही लाइट जलाई तो क्या देखता हूं सैकड़ों चमगादड़ें बरामदे में उलटी लटकी हुई हैं और घूर-घूर कर मुझे देख रही हैं। सन्नाटे में कुत्तों की रोने की आवाज अब और डरावनी लगने लगी। डर से मेरा बुरा हाल था। मैंने कांपते हाथों से लाइट बंद कर दी। अब मैं कुर्सी पर बैठकर हनुमान चालीसा पढ़ने लगा। चंद मिनट ही हुए होंगे कि मुझे ऐसा लगा मेरी गोद में आकर कोई बैठ गया है। मुझे काटो तो खून नहीं। मैंने भागकर लाइट जलाई तो देखता हूं एक बहुत बड़ा सफेद रंग का उल्लू उड़कर मेरे करीब से निकल गया। उसे देखकर मेरे होश फाख्ता हो गए। मैं शिकार का शौकीन रहा हूं पर इतना बड़ा उल्लू मैंने जीवन में कभी नहीं देखा। जैसे-तैसे सुबह हुई। ये किस्सा किसी को बताने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि मुझे मालूम था मेरी बात कोई नहीं मानेगा। आखिर मैंने वापस लौटने का मन बना लिया। 


साहब से कहा तो बोले मैं दौरे से लौटकर आ जाऊं उसके बाद चले जाना। साहब का आदेश टाल नहीं सकता था सो रूकना पड़ा। लेकिन मैंने अब तय कर लिया कि मैं गेस्ट रूम में नहीं रहूंगा। मैंने चपरासी रामप्रसाद को कहा कि मेरा सामान किसी दूसरे कमरे में रख दे। शाम को रोज की तरह जप किया। कोई बाधा नहीं आई। मैं समझ गया कि गेस्ट रूम में कुछ गड़बड़ थी। अब मैं सही जगह पर था। निश्चिंत होकर लेटा ही था कि मुझे ऐसी आवाज आई जैसे बाल्टी में पानी भरकर कोई (उलीच) फेंक रहा है। मैं समझ गया चपरासी कोई काम कर रहा है और ये मेरा वहम है। थोड़ी देर बाद पहले से जोर से फिर वही आवाज आई तो मैंने जोर से चिल्लाकर कहा…अरे रामप्रसाद क्या हो गया है। इतनी रात में पानी क्यों उलीच (फेंक) रहे हो। आवाज से नींद खराब हो रही है। पर उधर से कोई जवाब नहीं आया। फिर वही आवाज बार-बार आने लगी तो मैं गुस्से में उठकर आंगन में गया जहां एक बड़ी सी टंकी में लबालब पानी भरा था। अब आवाज और जोर-जोर से आने लगी मैं हिम्मत जुटाकर टंकी के पास गया। देखा पानी एकदम शांत है उसमें कोई हलचल नहीं है। चार लोहे की बाल्टियां भी उल्टी रखीं हैं । फिर भी टंकी से ही आवाज आ रही थी पर मुझे कोई दिखाई नहीं दे रहा था। मुझे समझते देर नहीं लगी कि माजरा क्या है? मैं सिर पर पैर रखकर भागा। 


सुबह रामप्रसाद से पूछा कि तू रात में कहां था? बोला- मेरी डयूटी तो रात 9 बजे ही खत्म हो जाती है। मैं घर चला जाता हूं। मैंने उससे रात की बात शेयर की तो उसने बताया कि ऐसा अनुभव उसे भी हुआ है और उसने एक छाया को पानी की टंकी के पास अपनी आंखों से देखा है और पानी फेंकने की आवाज भी सुनी है पर वहां टंकी से एक बूंद पानी भी नहीं गिरता , बालटियां वैसी ही रहती हैं। उसने बताया तब से उसने नाइट डयूटी करना बंद कर दिया है। अब साफ हो गया कि जो मैं समझ रहा था वो सही था। बस फिर मैंने साहब का इंतजार किए बिना बोरिया बिस्तर बांधा और वहां से रवाना हो गया। आज भी ये किस्से याद आते हैं तो सिहर उठता हूं।आगे…फिर कभी। 

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