वेदविहीन विज्ञान देहात्मवाद का पोषक, पर्यावरण का प्रदूषक तथा अत्यन्त विस्फोटक है। भारत अपनी मेधाशक्ति, रक्षाशक्ति, वाणिज्यशक्ति और श्रमशक्ति का सदुपयोग करने में अक्षम है। भारत अपने आदर्श की रक्षा करने में सर्वथा असमर्थ है।
ऐसी स्थिति में शिक्षा, रक्षा, न्याय, कृषि, गौरक्ष्य, वाणिज्य के सनातन प्रकल्प को समझने और क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। धार्मिक और आध्यात्मिक नेतृत्व विहीन स्वतन्त्र भारत के लिए घातक है। ऐसी स्थिति में सर्वहित की भावना से परस्पर सद्भावपूर्ण सम्वाद के माध्यम से सैद्धान्तिक निष्पत्ति प्राप्त कर स्वस्थ क्रान्ति की आवश्यकता है।