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Motivational story/गरीबों का दु:ख नहीं देखा गया..बन गए ‘भगवान’!

 Motivational story/     गरीबों का दु:ख नहीं देखा गया..बन गए ‘भगवान’!


शांतनु शर्मा.अपने लिए जिये तो क्या जिये…. एक दिन ये गाना सुन लिया। बस उसी दिन ठान लिया हमें कुछ करना है। ये मोटीवेशनल स्टोरी उन बच्चों की है जिन्होंने लॉकडाउन में कई गरीब लोगों की मदद कर उन्हें नई जिंदगी दी। इन गरीबों के लिए ‘भगवान’ से कम नहीं हैं ये बच्चे। इन बच्चों के जज्बे को सैल्यूट।सिलसिला शुरू हुआ था मदद से। एक ग्रुप था जो जगह-जगह जाकर गरीब परिवारों की कुछ मदद किया करता था। पर वहां की गरीबी, भुखमरी, मजबूरी देखकर इन बच्चों का दिल दहल गया। तब फैसला किया कि हम इनके लिए बहुत कुछ ऐसा करेंगे जिससे इनकी सच में मदद हो सके।

 

4 दोस्तों ने मिलकर शुरू किया ‘मिले-मिशे’ ( मिल -जुलकर)। आज ये 12 हो गए। रोहन नाथ बताते हैं कि स्लम एरिया में गरीबी, बदहाली, भुखमरी देखकर हम लोग दंग रह गए। कई बच्चे ऐसे थे जो 2 दिन से भूखे थे। उनके पास खाने को कुछ भी नहीं था। थी तो सिर्फ उम्मीद। आज खाना नहीं मिला तो कल तो मिलेगा। सीनियर सिटीजनस की हालत तो और भी खराब थी। भूख और बीमारी ने उन्हें इतना लाचार बना दिया था कि वे रोज सिर्फ मौत की दुआ मांगते थे। दवा और रोटी के लिए उनके पास पैसा ही नहीं था। सिर्फ इंतजार मौत का…वो भी कम्बख्त बुलाने से भी नहीं आती थी।

              क्या यही असली भारत है..?

बस… यहीं से शुरू हुआ सेवा का काम। सब मिलकर बैठे। तय हुआ रोज कोलकाता की एक गरीब बस्ती में जाकर लोगों की मदद की जाएगी। सबसे पहले हावड़ा की एक बस्ती को चुना गया। नेहा बताती हैं जैसे ही सुबह हम मंदिरतला, पाली पहुंचे तो हमें देखकर भीड़ लगना शुरू हो गई। छोटे-छोटे मासूम बच्चे हमसे फूड पैकेट छीनने लगे। बाद में पता चला वे कई दिनों से भूखे थे। बजुर्गों की आंखों में आंसू थे, वे हमें दुआ दे रहे थे। महिलाएं बहुत उम्मीद से हमें देख रहीं थीं। हम यहां के हालात देखकर यही सोच रहे थे कि यही असली भारत है।

सच ही कह रही थी नेहा..यही तो असली भारत है। हम कितनी भी तरक्की क्यों न कर लें पर जब तक इन लोगों की गरीबी, भुखमरी खत्म नहीं होती हमारे आगे बढ़ने का क्या मतलब? सरकारें आती हैं,जाती हैं ।बहुत नए-नए वादे करती हैं। लेकिन इनकी हालत बदतर होती चली जाती है। ये लोकतांत्रिक देश के वोटर हैं…पर खाली हाथ। खाने को नहीं है।


खैर, इस बीच कोरोना महामारी आ गई। लॉकडाउन लग गया। अब बच्चों को बहुत चिंता हो गई। उन्होंने चोरी-छिपे खाना, दवा पहुंचाना शुरू किया। कोरोना से पीड़ित  लोगों को अस्पताल पहुंचाया। अपनी जान पर खेलकर कई लोगों की जान बचाई। लॉकडाउन ने मुसीबत बढ़ा दी। 3 लोगों के 4 ग्रुप बनाए गए और अलग-अलग बस्तियों में जाकर राशन, फूड पैकेटस, दवाएं पहुंचाने का काम शुरू किया गया। पैसे खतम होने लगे पर मदद का जज्बा नहीं टूटा।


जैसे ही लोगों को पता चला उन्होंने मदद का हाथ आगे बढ़ाया। इसमें कुछ टॉलीवुड से जुड़ीं फिल्मी हस्तियां भी थीं। अब काम तेजी से चल पड़ा। रोहन बताते हैं कि हम इन्हें नाश्ता, फूड पैकेटस, राशन, दवाएं उपलबध कराते हैं। अंडे और बोर्नविटा रोज बांटते हैं । शनिवार-रविवार को नॉनवेज मछली और चिकन दिया जाता है। इसके अलावा हम सेनेटरी नेपकिन भी देते हैं। नेहा ने कहा कोरोना से बचाव के लिए हर बस्ती में कैंप लगाकर वैक्सीनेशन के लिए इन्हें प्रोत्साहित भी किया।

अभी 15 बच्चों का ग्रुप है और सभी 22 से 25 एजग्रुप के हैं। कोई नौकरी करता है तो कोई स्टूडेंटस है पर सभी का एक ही टारगेट है- गरीबों की मदद करना। एक बदलाव लाना ताकि किसी भी व्यक्ति को खाली पेट  सोना ना पड़े। आप भी इस स्टोरी से इंस्पायर होकर किसी की मदद के बारे में सोचें।



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