मध्य प्रदेश परिवहन विभाग में आयुक्त मुकेश जैन की आमद के बाद ऐसी क्या परिस्थितियां बन गई विभाग प्रमुख
के नाते उन्होंने मुख्यालय में बैठना बंद कर सीधे भोपाल से मोबाइल के माध्यम से दिशा निर्देश अधीनस्थ अधिकारियों को देते रहते इन दिशानिर्देशों में सर्वाधिक निर्देश अपने ही अधिकारी कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के मामले होते हैं भ्रष्ट एवं लापरवाह अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही होना चाहिए इसके हम समर्थक हैं परंतु कार्यवाही की आड़ में राख से कोयले अथवा खोलते दूध से मलाई इकट्ठी करने के विरुद्ध है हम मध्य प्रदेश ही नहीं देश के हर राज्य के परिवहन विभाग में एक आम बात अवैध वसूली की कहीं जाती है जो कुछ हद तक सत्य भी है परंतु ऐसा धरातल के अधिकारी कर्मचारी क्यों करते हैं अगर उनसे पूछा जाए तो उनका एक ही जवाब है होता है हमें अपने ऊपर के अधिकारियों के आदेशों की तामिल भी करनी पड़ती है मध्य प्रदेश परिवहन विभाग में इस समय एक तरफा मुकेश जैन का बोलबाला है शेष सभी अधिकारी बोने साबित है बात करें हम अधिकारियों एवं कर्मचारियों को जांच के नाम से प्रताड़ित करने की तो उसके लिए सरकार ने उप परिवहन आयुक्त शिकायत नियुक्त किया हुआ है परंतु पिछले 4 महीने से इस अधिकारी के पास कुल 25 से 30 शिकायतों की जांच आयुक्त में इस अधिकारी को सौंपी उनमें से भी अधिक वह जांच हैं जो पूर्व में जांच हो कर नस्ती हो चुकी है सूत्रों अनुसार अब तो उपायुक्त शिकायत को पिछले 2 महीने से शिकायत की जांच से भी दूर रख कर राख में से कोयले बटोरने की जांच इस अधिकारी से कराई जाती थी परंतु दूध में से मलाई इकट्ठी करने की जांच उपायुक्त एके सिंह एवं सजातीय सपना जैन से ही क्यों करवाई जाती हैं सूत्रों अनुसार इसमें भी ढोल में पोल है इसी पोल के रहस्य को जब एक सेवामुक्त होने की कगार पर निरीक्षक ने 7 माह पहले पोल खोली तो पहले से ही अपनी पत्नी के माध्यम से प्रताड़ना का आरोप लगा चुके कर्मचारी पर अपने पद का प्रभाव कर अपने चहेते सजायाफता अपराधी नुमा तथाकथित पत्रकार से शिकायत करवाकर अपराधिक प्रकरण भी पंजीबद्ध करा दिया.
प्राप्त जानकारी अनुसार इन जाँचो में से ऐसे अधिकारी कर्मचारियों को क्लीन चिट नहीं दी जाती जो आयुक्त के आदेश हो का पालन नहीं करते जो अधिकारी कर्मचारी जांच को प्रभावित करने के लिए आदेशों का पालन करते हैं उनमें अधिकतर को क्लीन चिट दी जाती है ऐसा पक्षपात क्यों यह तो आयुक्त खुद जानते हैं या उनकी कार्यप्रणाली परंतु अब तो मुख्यालय से बाहर निकल कर चौपाल तक यह दर्द अधिकारी कर्मचारियों का आम चर्चा का विषय बन गया है इसमें एक बात और महत्वपूर्ण है जो कल तक पीत पत्रकारिता के लिए आयुक्त के विरुद्ध तदोपरांत आयुक्त के निर्देश पर निरीक्षकों एवं अधिकारियों के विरुद्ध समाचार प्रकाशित करते थे वह अब आयुक्त के मौखिक निर्देशों का पालन करते हुए अब अधिकारी कर्मचारियों के विरुद्ध लोकायुक्त में शिकायतें करवाने के साथ ही अधिकारी कर्मचारियों को भयभीत किया जाता है हमारे पास ऐसे पुख्ता प्रमाण हैं अगर हमारे इस आरोप की विभाग के अलावा स्वतंत्र एजेंसी जांच करें तो हम ऐसे प्रमाणित साक्ष्य भी दे सकते हैं ऐसा इसलिए कि भोपाल में बैठे मंत्री जी तथा आला अधिकारी आयुक्त की इस अधिकारी कर्मचारी विभाग विरोधी कार्यप्रणाली को लेकर नाराज तो है मामला मुख्यमंत्री जी की दहलीज तक पहुंच गया है परंतु अंतिम निर्णय के हस्ताक्षर उनको ही करना है इसके लिए वह अपनी एक गोपनीय सूचना तंत्र के माध्यम से आयुक्त के ऊपर लगे सभी आरोपों के तथ्यों की शासन हित में जांच तो करवा चुके हैं जांच के क्या नतीजे होंगे उस आदेश की घड़ी का बेसब्री से विभाग के अधिकारी कर्मचारी ही नहीं संगठन के आला पदाधिकारी भी इँतजार कर रहे हैं जो इन सब शिकायतों एवं प्रताड़ना के बावजूद विभाग के हित के लिए कार्य करने में सजग हैं.