सिटी टुडे, गुना। जिले की चार विधानसभाओं में से बमोरी एक ऐसी विधानसभा है जहां 60 प्रतिशत आबादी आदिवासी है। इनकी प्राचीन परंपरा को जीवित रखने के लिए बमोरी जनपद की 80 पंचायतों में 68 बंगले बनवाए हैं। इनमें आदिवासियों के मुखिया बैठकर सामाजिक सरोकार और विवादों का निराकरण करते हैं।
गौर करने वाली बात है कि आदिवासी परिवारों में शादी से लेकर अन्य सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों के निर्णय भी इन्हीं बंगले में बैठकर लिए जाते हैं। त्योहारों के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम और लोकगीत का आयोजन भी इन्हीं बंगलों में होता है। पहले ये बंगले इन पंचायतों में मात्र कच्चे चबूतरा के तौर पर ही थे, लेकिन अब जनपद पंचायत ने पक्के चबूतरे बनाकर इन्हें छतरीनुमा आकार देकर बनवाया है। आदिवासियाें का कहना है कि बंगले में बैठकर जब मुखिया फैसला सुनाता है, तो उसे देवतुल्य मानकर वह उनके फैसले का पालन करते हैं। आदिवासी परिवार अपने पारिवारिक और सामाजिक झगड़ों को लेकर पुलिस या अन्य अधिकारियों के पास नहीं जाते हैं। बमोरी की 80 पंचायतों में बसे गांव, मजरा और टोला में एक दिन पहले ही घर-घर जाकर पंच बंगले पर पंचायत लगाने को लेकर जानकारी देता है। मुखिया और पंच बंगले में बैठकर मामले की पूरी जानकारी लेने के बाद फैसला सुनाते हैं। बता दें कि जिले में सबसे ज्यादा आदिवासी बमोरी जनपद की 80 पंचायतों में निवास करती हैै। यहां प्राचीन समय में बंगले पांरपरिक तौर पर मिट्टी के कच्चे चबूतरे पर घासफूंस की छांव वाले होते थे। लेकिन वर्ष 2021 में प्रशासन ने पक्के बंगलों का निर्माण शुरू करा दिया था, जो अब बनकर तैयार हो चुके हैं। एक बंगले की कीमत करीब 3.20 लाख रुपए है।
बंगलों का उपयोग आदिवासी अलग-अलग काम में करते हैं। जिस बंगले पर मुखिया चौपाल लगाकर समस्याओं का निराकरण करने के साथ ही सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करते हैं।