इस भीड़ में भी हैं ‘श्मशान बंधु’
शांतनु शर्मा. नागपुर. कोरोना की बेकाबू लहर ने शहर में लाशों के ढेर लगा दिए हैं। अस्पताल, श्मशान घाट कहीं जगह नहीं है। जीना मुश्किल हो रहा है तो मौत एक समस्या बनती जा रही है। अर्थी उठाने के लिए चार लोग नहीं जुट पा रहे हैं। ऐसे-ऐसे मंजर सामने आ रहे हैं कि रूह कांप उठती है। कहीं अधजली लाश सड़क पर पड़ी दिखती है तो कहीं कुत्ते लाश पर टूट रहे हैं। ऐसे में शहर के श्मशान बंधु सामने आए हैं। किसी की मौत की खबर मिलते ही श्मशान बंधु वहां पहुंच जाते हैं। उसकी अंतिम
यात्रा से लेकर दाहसंस्कार तक की सारी व्यवस्था करते हैं। वो भी नि:शुल्क। शहर में इनकी अपनी अलग पहचान है। श्मशान बंधु लंबे समय से ये कार्य कर रहे हैं।
श्मशान बंधु सुहास मित्रा बताते हैं कि हमारे संगठन में 50-60 लोग हैं जिनमें डॉक्टर, इंजीनियर,वकील,सीए,छात्र सभी शामिल हैं और वे इस कार्य के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। अगर किसी गरीब परिवार के पास दाह संस्कार के लिए पैसे नहीं होते हैं तो हम सब आपस में पैसा एकत्र कर दाह संस्कार करते हैं। मित्रा बताते हैं हम ऐसी बुजुर्ग दंपत्ति की भी मदद करते हैं जिनके बच्चे विदेश में हैं और कोरोना की वजह से वे स्वदेश नहीं आ पा रहें हैं।
वे बताते हैं कि सन 1970 में इस काम की शुरूआत अजनी निवासी अमूल्य रतन राय ने की थी। वे गरीब, असहाय, बुजुर्ग व्यक्ति की मौत होने पर उसके दाह संस्कार के लिए घर-घर जाकर चंदा एकत्र करते थे।धीरे-धीरे उनके इस काम ने और लोगों को भी प्रेरित किया। बस फिर क्या था लोग जुड़ते चले गए और कारवां बनता चला गया। आज उनकी इस परंपरा को नई पीढ़ी आगे बढ़ा रही है। कोरोना के चलते इनकी मदद से लोग राहत महसूस कर रहे हैं।
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