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मैकेनिकल इंजीनियर बना सीएम, इस राज्य की संभालेंगे जिम्मेदारी

 

अरविन्द तिवारी/ बंगलुरु. बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद अब बसवराज बोम्मई कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री होंगे। मंगलवार को येदियुरप्पा ने खुद इसका ऐलान करके सस्पेंस खत्म कर दिया है। बता दें कि बसवराज बोम्मई का नाम येदियुरप्पा ने ही सुझाया था, जिसका मंत्री के एस ईश्वरप्पा और बाकी सभी विधायकों ने समर्थन किया। 

जनता दल  से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले बसवराज बोम्मई येदियुरप्पा सरकार में गृह मंत्री रहे हैं और उनके बेहद करीबी भी माने जाते हैं।बोम्मई पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टाटा समूह से की थी।वह दो बार एमएलसी और तीन बार विधायक रहे हैं।

 विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बोम्मई कल यानी  बुधवार को  दोपहर तीन बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। सूत्रों की मानें तो येदियुरप्पा ने इस्तीफा देने से पहले ही बोम्मई का नाम भाजपा आलाकमान को सुझाया  था। बसवराज बोम्मई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से भी आते हैं। संघ के शीर्ष नेतृत्व के बेहद करीबी हैं। माना जाता है कि संघ और येदियुरप्पा के बीच की कड़ी के रूप में इन्होंने ही काम किया। 

ये है भाजपा का ‘खेला’

दरअसल भाजपा को कर्नाटक में तीन कोण साधने थे। पहला पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा , दूसरा लिंगायत समुदाय और तीसरा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ। येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय के हैं। संघ की पृष्ठभूमि के भी है, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा से निष्कासित होने के बाद उनके और संघ के शीर्ष नेतृत्व के संबंधों के बीच दरार आ गई थी। 

संघ कभी नहीं चाहता था कि येदियुरप्पा भाजपा में वापस आएं लेकिन वर्ष  2013 के चुनाव में बिना येदियुरप्पा के भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी ,  लिहाजा भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने येदियुरप्पा को वापस बुला लिया। कर्नाटक की आबादी में लिंगायत समुदाय की हिस्सेदारी 17% के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 90-100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिये येदियुरप्पा को हटाना आसान नहीं था , उनको हटाने का मतलब था इस समुदाय के वोट खोने का खतरा मोल लेना।

 भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीएस येदियुरप्पा को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। अलग होने के बाद येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पार्टी (केजपा) बनायी थी। इसका नतीजा यह हुआ कि लिंगायत वोट कई विधानसभा सीटों में येदियुरप्पा और भाजपा के बीच बंट गया था। विधानसभा चुनाव में भाजपा 110 सीटों से घटकर 40 सीटों पर सिमट गई थी। उसका वोट प्रतिशत भी 33.86 से घटकर 19.95% रह गया था। येदियुरप्पा की पार्टी को करीब 10% वोट मिले थे। वर्ष 2014 में येदियुरप्पा की वापसी फिर भाजपा में हुई , यह येदियुरप्पा का ही कमाल था कि कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 17 लोकसभा सीटें जीतीं।


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