सिटी टुडे। भितरवार में स्थित हरसी बांध एशिया का पहला मिट्टी और गारे से बना बांध है। इस बांध का निर्माण तत्कालीन रियासत के महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने करवाया था। यह ग्वालियर जिले में मिट्टी से बना एक बांध ऐसा है जो लगभग 87 सालों से जैसे का तैसा खड़ा हुआ है। इसका निर्माण शुरू 1928 से 1935 के बीच हुआ। करीब सात साल से अधिक समय तक चले इसके निर्माण में 78 लाख रुपए खर्च हुए थे। इस बांध का डिजाइन हॉलैंड के इंजीनियर जनरल डीएच डायफ ने तैयार किया गया था। 1940 में उन्होंने डबरा में शुगर मिल की स्थापना कराई थी। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि इस बांध की दीवार बनाने में गर्म चूने की लेयर डाली गई है। मुरम की लेयर डालने के बाद से पानी डालकर दो दिन तक उस पर रोलर चलाकर दबाया जाता था। यही इसकी मजबूती का सबसे बड़ा कारण है। आज इस बांध की नहरें क्षेत्र के किसानों की जीवनदायिनी हैं। ग्वालियर के साथ अब भिंड जिले में भी अब बांध की नहरों से पानी पहुंचने लगा है।
65000 हेक्टेयर में होती है सिंचाई : पहले इस बांध से 25000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती थी। मोहनी सागर बांध बनने से इसकी पोषक नहरें बनी और रकवा बढ़कर 65000 हेक्टेयर हो गया। हरसी बांध के तीन गेट हैं। 777.70 स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में फैले हरसी बांध की दीवार की लंबाई 2133.60 मीटर है। ऊंचाई 29.26 मीटर। बांध की जल संग्रहण क्षमता 199.66 मिलियन घन मीटर है।
65 किलोमीटर है नहर की लंबाई : डबरा और भितरवार क्षेत्र में सिंचाई के लिए एकमात्र साधन हरसी बांध से निकली नहरे हैं। हरसी बांध से निकली मुख्य नहर से क्षेत्र में छोटी-बड़ी करीब एक सैकड़ा नहरों को जोड़ा गया है। जिससे सभी क्षेत्रों में आसानी से पानी पहुंचाया जा सके। हरसी नहर का क्षेत्र 65 किलोमीटर है, जिसमें 35 डिस्ट्रीब्यूटर नहरे हैं। सभी मंडलों की लंबाई 424 किलोमीटर है।
पिछले साल आई बाढ़ में बहे कई पुल : पिछले साल सिंध नदी में आई बाढ़ में यह बांध पूरा भर गया था। इसके बेस्ट वियर भी चालू करने पड़े थे। लोगों में दहशत का माहौल था। आसपास के कई नवनिर्मित पुल बह गए थे। लोगों का कहना है कि जब इतनी बाढ़ में इस बांध को कुछ नहीं हुआ तो आने वाले समय भी यह काफी मजबूती से खड़ा रहेगा।