सिटी टुडे। मध्य प्रदेश कांग्रेस के अंदर र्वचस्व की लड़ाई दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से ही जारी है भले ही उन्होंने 10 साल तक राजनीतिक सन्यासी बनकर कोई पद न लिया पर इस दौरान उन्होंने राजनीतिक शतरंज के खेल में माहिर खिलाड़ी होने का प्रमाण देते हुए प्रदेश कांग्रेस के सभी कद्दावर नेताओं को कमलनाथ की परछाई के सहारे हाशिए पर ला दिया। जिनमें ब्राह्मण समाज के सुरेश पचौरी, क्षत्रिय समाज के अजय सिंह, पिछड़ा वर्ग अरुण यादव, आदिवासी वर्ग से उमंग सिंगार, बाला बच्चन को भी हाशिए पर लाकर कांग्रेस के सभी प्रमुख मोर्चा, संगठनों पर अपने समर्थकों को ही बिठा दिया, दिग्विजय सिंह ने अपने राजनीतिक रूप से धुरविरोधी सबसे बड़े कद्दावर नेता श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था।
सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में जाने के बाद दिग्विजय सिंह ने प्रदेश कांग्रेस मे अपना एकाधिकार जमाने के लिए कमलनाथ के नेतृत्व के विरुद्ध फिर उसी तर्ज पर शतरंजी घोड़े दौड़ा दिए जिस तरह पूर्व में उपरोक्त सभी नेताओं को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया था। पुत्र मोह के चलते सुपुत्र को मुख्यमंत्री बनाने का सपना पाले दिग्विजय सिंह ने सरकार गिरते ही सबसे पहले दोनों पिता-पुत्र ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बंगले पर पहुंचकर बधाई देने के साथ पुत्र जयवर्धन सिंह को आशीर्वाद लेने हेतु सौजन्य भेंट के दौरान जयवर्धन सिंह ने शिवराज सिंह चौहान के पांव तक छूने में संकोच नहीं किया अब इसे कोई पारिवारिक संस्कार मानें या राजनीतिक संस्कार। खैर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को उसी दिन से कमजोर साबित करने के लिए दिग्विजय सिंह तथा उनके समर्थकों ने धरातल स्तर पर प्रयास शुरू किए। कमलनाथ भी इसे भाँपकर अपनी जमीन मजबूत करने में जुट गए।
हाल ही में स्थानीय निकाय चुनाव में टिकट वितरण को लेकर दोनों नेताओं के मन की रार फिर उजागर हो गई। इसी रार के कारण ग्वालियर चंबल संभाग का प्रभारी होने के बाद भी दिग्विजय सिंह ने चुनाव प्रचार में ग्वालियर चंबल संभाग से अपने आप को दूर रखा।
कुछ राजनीतिक समीक्षको की मानें तो इसी दूरी से ग्वालियर तथा मुरैना में महापौर कांग्रेस के बन सके अन्यथा दिग्विजय सिंह के समर्थकों को जहां-जहां सिंह ने खुद जाकर चुनाव प्रचार किया वहां उनके प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा जिसमें मुख्यरूप से भोपाल नगर निगम महापौर चुनाव में विभा पटेल भी शामिल हैं।
5 अगस्त, शुक्रवार को ग्वालियर में संपन्न हुए नगर निगम के सभापति के चुनाव की तैयारी विधायक सतीश सिकरवार तथा उनकी टीम ने अंतिम रूप देकर बहुमत न होने के बाद भी सभापति चुनाव जीतने का संकल्प लेकर गणित बिठाकर फतेह की इबारत लिख ली थी परंतु ऐनवक्त पर कांग्रेस के अंदर ही दिग्विजय सिंह तथा उनके समर्थकों ने चम्बल अंचल में कांग्रेस को संजीवनी देकर मजबूत करने में लगे इस नए पावर सेंटर को चुनौती देने के लिए ऐनवक्त पर विधायक लाखन सिंह की बहू उपासना सिंह को प्रत्याशी बनाए जाने के लिए दबाव बना डाला परंतु कमलनाथ के स्पष्ट निर्देश पर शहर अध्यक्ष देवेंद्र शर्मा ने जैसे ही सुबह 9:30 वजे सभापति प्रत्याशी के लिए श्रीमती लक्ष्मी सुरेश गुर्जर का नाम एलान किया वैसे ही विद्रोह के सुर मुखर हो गए।
फिर क्या था मात्र आधे घंटे के अंदर ही दिग्विजय सिंह समर्थको ने कांग्रेस के नए पावर सेंटर को चुनौती या कहें कि अप्रत्यक्ष रूप से कमलनाथ को चुनौती देने की लिए योजना बनाकर दिग्विजय सिंह समर्थक 3 पार्षद जिनके नाम राजनीतिक गलियारों में चर्चित है जिसकी पुष्टि हम नहीं करते परन्तु सुर्खियों में है उपासना सिंह, सोनू कुशवाह तथा हैवरन कंसाना की पत्नी का नाम बताया जाता है, ने मतदान में अपनी संदिग्ध भूमिका निभाकर कॉंग्रेस की जीती बाजी को हार में बदलकर कमलनाथ को दोनों संभाग में उनकी धरातल पर बढती मजबूत पकड़ को चुनौती दी। इसी रार के कारण आखिर कैसे आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करेंगे जो कांग्रेस नेतृत्व के लिए चिंतनीय विषय है। कुछ सूत्रों अनुसार कांग्रेस के जो 12 विधायक विधानसभा चुनाव के पूर्व भाजपा में शामिल होंगे उनमें मुख्यमंत्री के सजातीय कांग्रेस विधायक का नाम भी शामिल है।