नई दिल्ली. अपनी पार्षदी बचाने के चक्कर में महाराष्ट्र के सोलापुर की एक महिला नेता ने अपने ही बच्चे को ‘नकार’ दिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महिला की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण अपने बच्चे को पराया नहीं बताया जाना चाहिए। दरअसल शिवसेना की अनिता मागर के सोलापुर नगर निगम में पार्षद के रूप में चुनाव को दो से अधिक बच्चे होने के कारण रद्द कर दिया गया था।
क्या है मामला
- 2017 में सोलापुर नगर निगम के पार्षद के लिए मागर और तीन अन्य ने सोलापुर के एक वार्ड से चुनाव लड़ा था और इसमें मागर विजयी हुई थीं। दूसरे स्थान पर चुनीं गई उम्मीदवार ने चुनाव परिणाम को चुनौती दी और सोलापुर सिविल कोर्ट में एक चुनाव याचिका दायर की। जिसमें कहा गया था कि मागर का चुनाव महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम, 1949 की धारा 10(1)(आई) के तहत रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि इसके अनुसार कोई व्यक्ति पार्षद के निर्वाचन के लिए उस समय अयोग्य होगा जब उसके दो से अधिक बच्चे होंगे। इस याचिका पर निचली अदालत ने वर्ष 2018 को मागर के चुनाव को रद्द कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ मागर ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
- मागर के केस में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि इसके पर्याप्त सुबूत हैं कि नामांकन पत्र दाखिल करने की तारीख को मागर और उनके पति के तीन बच्चे थे, इसलिए सार्वजनिक कार्यालय चलाने के लिए राज्य सरकार के दो बच्चों के नियम के तहत उन्हें अयोग्य करार दिया गया था। मागर ने इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी ।
ये कहा अदालत ने
- सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने कहा कि सिर्फ निर्वाचित होने के लिए आपने अपने बच्चे को पराया बता दिया। अपने बच्चों को सिर्फ इसलिए अस्वीकार न करें कि आप चुनाव जीत कर एक राजनीतिक पद हासिल करना चाहतीं हैं।
- चुनाव जीतने के लिए आपने यह कहानी बनाई थी। स्कूल के रिकॉर्ड के मुताबिक मागर ही उसकी मां हैं। जन्म प्रमाणपत्र को बाद में बदल दिया गया। कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यह सब किया गया। हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। आपको अपने बच्चे के बारे में सोचना चाहिए।